जुन्नून पैरों में बेड़ियां और हाथों में हथकड़ियां पहने कैदखाने में पहुंचे। उनके भक्त हाल पूछने के लिए कैदखाने के चारो ओर जमा हो गये। वे लोग आपस में कहने लगे, "हो सकता है कि हजरत जान-बूझकर पागल बने हों। इसमें कुछ-न-कुद भेद जरू है, क्योंकि ये ईश्वर के भक्तों में सबसे ऊंचे हैं। ऐसे प्रेम से भी परमात्मा बचाये, जो पागलपन के दर्जे तक पहुंचा दे।"
इस तरह की बातें करते-करते जब लोग हजरत जुन्नून के पास पहुंचे तो उन्होंने दूर से ही आवाज दी, "कौन हो? खबरदार, आगे न बढ़ना!"
जुन्नून ने जब ये बातें सुनीं तो उन्होंने इन लोगों की परीक्षा करने का विचार किया। वे उन्हें बुरी-बुरी गालियां देने और पागलों की तरह ऊट-पटांग बकने लगे। पत्थर-लकड़ी, जो हाथ लगा, फेंक-फेंककर मारने लगे।
यह देखकर लोग भाग निकले। जुन्नून ने कहकहा लगाकर सिर हिलाया और एक साधु से कहा, "जरा इन भक्तों को तो देखो। ये दोस्ती का दम भरते हें। दोस्तों को तो अपने मित्र का कष्ट अपनी मुसीबतों के बराबर होता है, और उनको मित्र से जो कष्ट पहुंचे उसे वह सहर्ष सहन करते हैं।"
[मित्र के कारण मिले हुए कष्टों और मुसीबतों पर खुश होना मित्रता की चिह्न है। मित्र का उदाहरण सोने के समान है और उसके लिए परीक्षा अग्नि के तुल्य है। शुद्ध सोना अग्नि में पड़कर निर्मल और निर्दोष होता है।]






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