"तू दुर्भाग्य से ऐसे गंवार के पल्ले पड़ गया, जो देखभाल करना भी नहीं जानता था। अब तू यहीं रह और देख कि मैं तुझको किस तरह घास चरा-चरा कर हृष्ट-पुष्ट बनाता हूं।"
पहले तो बादशाह ने बाज का खयाल छोड़ दिया था, लेकिन कुछ दिन बाद उसे फिर उसकी याद सताने लगी। उसने उसको बहुत ढुंढ़वाया, परन्तु कहीं पता न चला। तब बादशाह स्वयं बाज की तलाश में निकला। चलते-चलते वह उसी स्थान पर पहुंच गया, जहां बाज अपने पर कटवाये रस्सी से बंधा घास में मुंह मार रहा था। बादशाह को उसकी यह दशा देखकर बड़ा दु:ख हुआ और वह उसे साथ लेकर वापस चला आया। वह रास्ते में बार-बार यही कहता रहा, "तू स्वर्ग से नरक में क्यों गया था?"
[बाज की तरह आदमी भी, अपने स्वामी परमात्मा को छोड़कर दु:ख उठाता हैं। संसार की माया उसे पंगु बना देती है और मूर्ख मनुष्य अपनी मूर्खता के कामों को भी बुद्धिमानी का कार्य समझते हैं।] १






0 comments:
Post a Comment