रात का समय था। सारा मदीना शहर सोया पड़ा था। उसी समय हजरत उमर शहर से बाहर निकले। तीन मील जाने के बाद एक औरत दिखाई दी। वह कुछ पका रही थी। पास ही दो तीन बच्चे रो रहे थे। हजरत उमर ने उस औरत से पूछा, “ये बच्चे क्यों रो रहे है?” औरत ने जबाब दिया, “भूखे हैं। कई दिन से खाना नहीं मिला। आज भी कुछ नहीं है। खाली हांडी में पानी डाल कर पका रही हूं।
हजरत ने पूछा, “ऐसा क्यों कर रही हो?...
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जीवन नहीं बदल सकते
अपना जीवन न तो किसी को दिया जा सकता है और ना ही किसी से उसका जीवन उधार लिया जा सकता है। जिन्दगी में प्रेम का, खुशी, का सफलता या असफलता का निर्माण आपको ही करना होता है इसे किसी और से नहीं पाया जा सकता है।
बात दूसरे महायुद्ध के समय की है। इस युद्ध में मरणान्नसन सैनिकों से भरी हुई उस खाई में दो दोस्तों के बीच की यह अद्भुत बातचीत हुई थी। जिनमें से एक बिल्कुल मौत के दरवाजे पर खड़ा है। वह जानता है कि वह मरने वाला है और उसकी मौत कभी भी हो सकती है। इस स्थिति में वह अपने पास ही पड़े घायल दोस्त से बोलता है। दोस्त में जानता हूं तुम्हारा...
आपका एटिट्युड क्या है?
एक बार की बात है एक जगह मंदिर बन रहा था और एक राहगीर वहां से गुजर रहा था।
उसने वहां पत्थर तोड़ते हुए एक मजदूर से पूछा कि तुम क्या कर रहे हो और उस पत्थर तोड़ते हुए आदमी ने गुस्से में आकर कहा देखते नहीं पत्थर तोड़ रहा हूं आंखें हैं कि नहीं?
वह आदमी आगे गया उसने दूसरे मजदूर से पूछा कि मेरे दोस्त क्या कर रहे हो? उस आदमी ने उदासी से छैनी हथोड़ी से पत्थर तोड़ते हुए कहा रोटी कमा रहा हूं बच्चों के लिए बेटे के लिए पत्नी के लिए । उसने फिर अपने पत्थर तोडऩे शुरु कर दिए ।
अब वह आदमी थोड़ा आगे गया तो देखा कि मंदिर के पास काम करता हुआ...
असली ख़ुशी
गौरव अपने दोस्त सोमू के घर गया "यार सोमू तुम्हारे घर में डीवी डी नहीं हे
ओर तो ओर टी वी भी नहीं हे । तुम शाम को बोर नहीं होते । हम तो अपने घर
में ख़ूब फिल्मे देखते हैं ।"नहीं शाम को जब पापा घर आते हेतो हम
कुछ देर पार्क में फ़ुटबाल खेलते हे फिर घर आकर खाना खा कर होमवर्क करते हे
सोते समय कहानी सुनते हैं । सोमू ने सहज अंदाज़ में कहा।गौरव को अपना घर
याद आ रहा था । पापा शराब पी देर रात को घर आते ओर मम्मी पर ज़ोर ज़ोर से
चिल्लाते । कभी-कभी तो हाथ भी उठा देते थे । गौरव इन सब से अनजान बना
टी.वी. के चैनल बदलता रहता । अपने आंसुओं...
भाग्य से ज्यादा और समय से पहले, न किसी को मिला है और न मिलेगा......
भाग्य से ज्यादा और समय से पहले, न किसी को मिला है
और न मिलेगा......
एक सेठ जी थे जिनके पास काफी दौलत थी और सेठ जी ने
उस धन से निर्धनों की सहायता की, अनाथ आश्रम एवं
धर्मशाला आदि बनवाये।
इस दानशीलता के कारण सेठ जी की नगर में काफी
ख्याति थी।
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी परन्तु
बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी,
शराबी, सट्टेबाज निकल गया जिससे सब धन समाप्त हो
गया।
बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से
कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो मगर अपनी बेटी
परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों...
मुझे भी कभी अपने इस शरीर पर बहुत गुमान होता था ।
एक व्यक्ति जिसका सारा शरीर कोढ़ ग्रस्त था ,सड़क
किनारे बैठ कर भीख मांग कर पेट भरता था ।
एक दिन एक युवक उसके पास रुका और पुछा ," भाई , मैं तुम्हे
कई दिनों से देख रहा हूँ , शायद कई बरसों से , तुम्हे
ज़िन्दगी जीना कैसा लगता है ?
तुम्हे कैसा महसूस होता है जब कोई तुम्हारे पास आता नही
और लोग दूर ही रहते हैं तुमसे ?
"कोढ़ग्रस्त व्यक्ति ने उत्तर दिया " मैं भी कई बार यही
सोचता हूँ , पर जीवन जीना मेरे बस की बात नही है ।
मुझे लगता है कि प्रभु चाहता है कि लोग मुझे देखें , चाहे
नफरत से ही सही , ताकि उन्हें भी महसूस हो कि मैं भी
कभी उन्ही की...
हरिवंशराय बच्चन ने अपनी कविताओ में कुछ बहुत ही सूंदर लाइनें लिखी थी.
हारना तब आवश्यक हो जाता है
जब लड़ाई "अपनों" से हो !
और
जीतना तब आवश्यक हो जाता है
जब लड़ाई "अपने आप " से हो ! !
मंजिले मिले , ये तो मुकद्दर की बात है
हम कोशिश ही न करे ये तो गलत बात है
कीसी ने बर्फ से पुछा की,
आप इतने ठंडे क्युं हो ?
बर्फ ने बडा अच्छा जवाब दिया :-
" मेरा अतीत भी पानी;
मेरा भविष्य भी पानी..."
फिर गरमी किस बात पे रखु ??...
दिल को छु लेने वाली ये कहानी जरुर पढे.....
बाहर बारिश हो रही थी और अन्दर क्लास चल रही थी ,
तभी टीचर ने बच्चों से पूछा कि अगर तुम सभी को 100-100
रुपये दिए जाए तो तुम सब क्या क्या खरीदोगे ?
किसी ने कहा कि मैं वीडियो गेम खरीदुंगा,
किसी ने कहा मैं क्रिकेट का बेट खरीदुंगा ,
किसी ने कहा कि मैं अपने लिए प्यारी सी गुड़िया
खरीदुंगी,
तो किसी ने कहा मैं बहुत सी चॉकलेट्स खरीदुंगी |
एक बच्चा कुछ सोचने में डुबा हुआ था, टीचर ने उससे पुछा
कि तुम क्या सोच रहे हो ? तुम क्या खरीदोगे ?
बच्चा बोला कि टीचर जी, मेरी माँ को थोड़ा कम
दिखाई देता है तो मैं अपनी माँ के लिए एक चश्मा
खरीदूंगा ।
टीचर...
परमात्मा की पहली प्रतीति चिंतन से मिलती है
परमात्मा की पहली प्रतीति चिंतन से मिलती है,
पहला आभास। लेकिन अनुभव नहीं, सिर्फ आभास। सिर्फ इस
बात की झलक कि वह है। इस झलक पर ही जो रुक जाएगा, वह
भी परमात्मा को नहीं पहुंच पाया। उसने भी अनुभव
नहीं किया। यह झलक जरूरी है, पर काफी नहीं है। चिंतन के
बाद, मन में बारंबार चिंतन करके ध्यान में लाया हुआ
परमात्मा।
यह जो पहली झलक मिले, फिर इसको ध्यान में रूपातरित
करना है। यह जो पहली झलक अहा, यह सदा स्मरण रहने लगे,
यह ध्यान बन जाए; इसे भूला ही न जा सके।
उठते—बैठते, सोते—जागते वह झलक सम्हालकर रखनी है भीतर।
जैसे मा अपने बच्चे को गर्भ में...
परमात्मा की पहली प्रतीति चिंतन से मिलती है
परमात्मा की पहली प्रतीति चिंतन से मिलती है,
पहला आभास। लेकिन अनुभव नहीं, सिर्फ आभास। सिर्फ इस
बात की झलक कि वह है। इस झलक पर ही जो रुक जाएगा, वह
भी परमात्मा को नहीं पहुंच पाया। उसने भी अनुभव
नहीं किया। यह झलक जरूरी है, पर काफी नहीं है। चिंतन के
बाद, मन में बारंबार चिंतन करके ध्यान में लाया हुआ
परमात्मा।
यह जो पहली झलक मिले, फिर इसको ध्यान में रूपातरित
करना है। यह जो पहली झलक अहा, यह सदा स्मरण रहने लगे,
यह ध्यान बन जाए; इसे भूला ही न जा सके।
उठते—बैठते, सोते—जागते वह झलक सम्हालकर रखनी है भीतर।
जैसे मा अपने बच्चे को गर्भ में...