उसने कहा, "मजाक न कर, भाई, मुझे तराजू चाहिए।"
सुनार ने कहा, "मेरी दुकान में झाडू नहीं हैं।"
उसने कहा, "मसखरी को छोड़ दे, मैं तराजू मांगने आया हूं, वह दे दे और बहरा बन कर ऊटपटांग बातें न कर।"सुनार ने जवाब दिया, "हजरत, मैंने तुम्हारी बात सुन ली थी, मैं बहरा नहीं हूं। तुम यह न समझो कि मैं गोलमाल कर रहा हूं। तुम बूढ़े आदमी सूखकर कांटा हो रहे हो। सारा शरीर कांपता हैं। तुम्हारा सेना भी कुछ बुरादा है और कुछ चूरा है। इसलिए तौलते समय तुम्हारा हाथ कांपेगा और सोना गिर पड़ेगा तो तुम फिर आओगे कि भाई, जरा झाड़ू तो देना ताकि मैं सोना इकट्ठा कर लूं और जब बुहार कर मिट्टी और सोना इकट्ठा कर लोगे तो फिर कहोगे कि मुझे छलनी चाहिए, ताकि खाक को छानकर सोना अलग कर दूं। हमारी दुकान में छलनी कहां? मैंने पहले ही तुम्हारे काम के अन्तिम परिणाम को देखकर दूरदर्शी
कहा था कि तुम कहीं दूसरी जगह से तराजू मांग लाओ।"
[जो मनुष्य केवल काम के प्रारम्भ को देखता है, वह अन्धा है। जो परिणाम को ध्यान में रक्खे, वह बुद्धिमान है। जो मनुष्य आगे होने वाली बात को पहले ही से सोच लेता है, उसे अन्त में लज्जित नहीं होना पड़ता।]१






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