जब मालिक घर से आया तो देखा कि तेल से तमाम फर्श चिकना हो गया है। पंसारी ने गुस्सा होकर तोते को ऐसी चोट मारी कि उसके सिर के बाल उड़ गये। इस रंज की वजह से तो तोते ने बोलना-चालना बिल्कुल छोड़ दिया। पंसारी अपने इस आचरण पर पश्चात्ताप करने लगा। वह बार-बार अपने जी में कहा कि क्या ही अच्छा होता, यदि मेरे हाथ उस घड़ी से पहले ही टूट जाते, जिस समय मैंने इस तोते को मारा था।
तोते ने तुरन्त साधु पर कटाक्ष किया और कहा कि ओ गंजे, शायद तूने भी तेल की बोतल गिरायी है, तो तुझे गंजा होना पड़ा।
सुननेवाले खूब हंसे कि लो साहब, यह तोता साधु को भी अपने समान समझता है।
[अपनी दशा के अनुसार संसार के अन्य सज्जन मनुष्यों और महापुरुषों की हालत का अन्दाज नहीं करना चाहिए। अक्सर ऐसा हुआ है कि लोगों ने महान आत्माओं को नही पहचाना, उनके उपदेशों पर अमल नहीं किया और पथ-भ्रष्ट हो गये।]






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