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मोह का जाल

मोह का जाल


एक लड़का अपने बाप के ताबूत पर फूट-फूटकर रोता ओर सिर पीटता था, "पिताजी, लोग तुम्हें ले जा रहे हैं? ये तुम्हें एक अंधेरे गड्ढे में डाल देंगे, जहां न कालीन है, न बोरिया है, न वहां रात को जलाने के लिए दीपक है, न खाने के लिए भोजन। न इसका दरवाजा खुला है, न बन्द है। न वहां पड़ोसी हैं, जिससे सहारा मिल सके। तुम्हारा पवित्र शरीर, जिसे सम्मानपूर्वक लोग चूमते थे, उस सूने और अंधेरे घर में, जो रहने के बिल्कुल अयोग्य है, जिसमें रहने से चेहरे का रूप और सौन्दर्य जाता रहता है, क्योंकर रहेगा?" इस तरह वह लड़का कब्र का हाल बयान करता था और खून के आंसू उसकी आंखों से टपकते जाते थे। एक मसखरे ने ये शब्द सुनकर अपने आप से कहा, "पिताजी! भगवान् की कसम, मालूम होता है कि ये लोग इस लाश को हमारे घर ले जा रहे हैं।"


बाप ने मसखरे बेटे से कहा, "अरे मूर्ख, यह क्या अनुचित बात कहता है?"

मसखरे ने जवाब दिया "जो निशानियां इसने बतायी हैं, उन्हें तो सुनिए। ये जो चिह्न इसने एक-एक करके गिने हैं, वे वास्तव में सब-के-सब हमारे घर के हैं। हमारे घर मेंभी न बोरिया है, न चिराग हे, न खाना है, न दरवाजा है, न चौक है और न कोठा है।"

[इस तरह के शिक्षा ग्रहण करने के योग्य चिह्न सब मनुष्यों की दशा में विद्यमान हैं, परन्तु वे सांसारिक मोह में फंसे रहने के कारण इनपर ध्यान नहीं देते। यह हृदय, जिसमें ईश्वरीय ज्योति का प्रकाश नहीं पहुंचता, नास्तिक की आत्मा की तरह अन्धकारमय है। ऐसे हृदय से तो कब्र ही अच्छी है।]


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