खाने पीने की चीजों से भरे है
कहीं पर फल है
तो कहीं आटा दालें है
कहीं पर मिठाई है,कहीं पर मसाले
है
फलों की ही बात लेलो ,
आम के आम,गुठलियों के भी दाम
मिलते है कभी अंगूर खट्टे हैं,
कभी खरबूजे,खरबूजे को देख कर रंग
बदलते है
कहीं दाल में काला है,
कोई डेड़ चांवल
की खिचड़ी पकाता है
कहीं किसी की दाल
नहीं गलती,
कोई लोहे के चने चबाता है कोई
घर बैठा रोटियां तोड़ता है,
कोई दाल भात में मूसरचंद बन
जाता है
मुफलिसी में जब
आटा गीला होता है ,
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़
जाता है
सफलता के लिए बेलना पड़ते है कई
पापड
आटे में नमक तो जाता है चल ,पर
गेंहू के साथ,घुन भी पिस जाता है
अपना हाल तो बेहाल है
ये मुंह और मसूर की दाल है
गुड खाते हैं और गुलगुले से परहेज
करते है
और गुड का गोबर कर बैठते है
कभी तिल का ताड़,कभी राई
का पर्वत बनता है कभी ऊँट के मुंह
में जीरा है ,
कभी कोई जले पर नमक
छिड़कता है
किसी के दांत दूध के है ,
किसी को छटी का दूध याद आ
जाता है
दूध का जला छाछ को भी फूंक
फूंक पीता है ,
और दूध का दूध और
पानी का पानी हो जाता है
शादी बूरे के लड्डू है ,जिनने खाए
वो भी पछताए,
और जिनने
नहीं खाए ,वो भी पछताते है
पर शादी की बात सुन ,मन में
लड्डू फूटते है ,
और शादी के
बाद ,दोनों हाथों में लड्डू आते है
कोई जलेबी की तरह
सीधा है ,कोई टेढ़ी खीर है
किसी के मुंह में घी शक्कर है ,
सबकी अपनी अपनी तकदीर है
कभी कोई चाय
पानी करवाता है ,
कोई मख्खन लगाता है
और जब छप्पर फाड़ कर कुछ
मिलता है ,
तो सभी के मुंह में पानी आता है
भाई साहब अब कुछ भी हो ,
घी तो खिचड़ी में ही जाता है
जितने मुंह है,उतनी बातें है
सब अपनी अपनी बीन बजाते है
पर नक्कारखाने में
तूती की आवाज कौन सुनता है ,
सभी बहरे है,बावरें है
ये सब हिंदी के मुहावरें ह






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