ऊंट ने कहा, "जंगलों और पहाड़ों के साथी, तुम क्यों रुक गये और इस समय क्या चिन्ता है? आओ, साहस करके नदी में उतरो। तुम तो सरदार और आगे-आगे चलनेवाले हो, बीच रास्ते में ठहरकर हिम्मत न हारो।"
चूहे ने जवाब दिया, "नदी का पाट बहुत चौड़ा है और मुझे इसमें डूब जाने का डर है।"
ऊंट ने कहा, "अच्छा, मैं देखू पानी कितना गहरा है।"
चूहे ने कहा, "जो चीज तेरे आगे चींटी है, वही हमारे लिए अजगर है, क्योंकि जांघ जांघ का भी फर्क हैं अगर पानी तेरी जांघ तक है तो मेरे सिर से भी गजों ऊंचा होगा।"
ऊंट ने कहा, "खबरदार, आगे फिर कभी ऐसी गुस्ताखी न करना, नहीं तो स्वयं हानि उठायेगा। अपने जेसे चूहों के आगे तुम चाहे कितनी ही डींग हांको, परन्तु ऊंट के आगे चूहा जीभ नहीं हिला सकता!"
चूहे ने कहा, "मैं तौबा करता हूं। ईश्वर के लिए इस खतरनाक पानी से मेरी जान बचाओ।"
ऊंट को दया आयी और कहा, "अच्छा, मेरे कोहान पर चढ़कर बैठ जा। इस तरह आर-पार होना मेरा काम है। तुझ जैसे हजारों को नदी पार करा चुका हूं।"
[ऐ मनुष्य, जब तू पैगम्बर नहीं तो निर्दिष्ट मार्ग से चल, जिससे कि कुएं-खाई से बचकर आसानी से अपने लक्ष्य पर पहुंच जाये। जब तू बादशाह नहीं तो प्रजा बनकर रह और जब तू मल्लाह नहीं तो नाव को न चला। तांबे की तरह रसायन का सहारा ले। ऐ मनुष्य! तू महापुरुषों की सेवा कर।]






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