लिखना नहीं आता
मेरा जीवन उसको समर्पित जिसे
पढना नहीं आता
जिसे क कबूतर नहीं आता प्रश्न उत्तर
नहीं आता
गिनतियाँ भी नहीं आती जोड़
बाकी कर न पाती
पर वो मेरी माँ प्यारी, अपमानित
उसको न करूँगा
आज मैं बिखरे शब्दों से,
भावों की माला पहनाकर
अपनी प्यारी भोली माँ के उस
नरमी आँचल का
अपनी इस छोटी कविता से,
मैंउसका श्रृंगार करूँगा
माँ का चेहरा नूर है, मेरे लिए सबके लिए
माँ खुशियों का पूर है, मेरे लिए सबके
लिए
माँ ने की खुशियाँ न्योछावर, अपने एक
बच्चे के लिए
माँ जली है चिराग बनकर, औलाद के
अच्छे के लिए
माँ खुदा की भेजी गयी, एक मनमोहक
मूरत है
उस मूरत की छाया की हर बच्चे को जरूरत
है
वो नहीं तो मैं न होता, माली बिन
उपवन न होता
वो खेत के बाड़ सी है ,
जिसकी सुरक्षा से मैं सोता
सर्दी गर्मी बारिशों से, उसने ही हर बार
बचाया
रातों जागकर पाखियों से हवा देकर उसने
सुलाया
गरीबी का दंश झेला, कमाकर कर
खाना खिलाया
फटी साड़ी में बिता दी ज़िन्दगी पर
मेले
खिलौना दिलाया।
जिसने करदी हर ख़ुशी कुर्बान बच्चे के
लिए
जिसने गले लगाया गम को उसके अच्छे
के लिए
रात दिन बस कुछ न जाना, कहाँ पहुँच
गया जमाना
उम्मीद के सपने ही संजोये बच्चे
को अपना माना
पर हाय रे ये स्वार्थ की मकड़ी ने जले इतने
बना लिए
उसके आँख के तारो ने माँ सेदूर घर
बना लिए
उसके बेटे शहरो के आकर्षण में झूल गए
वो इतने बड़े हो गए की माँ की ममता भूल
गए
ये वो ही बेटे हैं जो माँ की आँखों के तारे
थे
वो लगते थे माँ को पूरी दुनिया से प्यारे थे
क्या लाख दुआएं मांगी थी उसके रहमत
की
दिन रात फिकर करती थी उन बेटों के
सेहत की
वो बेटे उस बूढी माँ को रोटी देते कतराते
हैं
उसके बीमार हो जाने पर खर्चे से घबराते हैं
मैंने माँओं को सड़कों पर रोटी चुगते
देखा है
उनकी सपनों के क्षतिग्रस्त
जीवनचित्रों को देखा है
इन्ही दिनों की खातिर उसने इतने
दुखदर्द जिए
उसकी आवश्यकता हेतु जीवन भर संघर्ष
किये
फूट फूट कर रोई होगी उमीदों की आँखें
उसकी
जब टूटी उसकी ख्वाब
संजोती आसमा की राहे उसकी
हम सोचा करते थे पत्थर से कठोर
क्या होता है
जो पिघलता नही पर टूट जाता है
लेकिन जब ये बात सुनी तो सातों सागर
खोल गए
भूकंप सा झटका लगा की मन पर्वत डोल
गए
जब हैवानो ने धरती की छाती पर
बड़ा पाप कर डाला
कुछ बेटो मिलकर माँ को मौत की नींद
सुला डाला
उन लोगो ने क़त्ल किया एक बुढ़िया के
सपनो का
क़त्ल किया उन लोगो रिश्ते
नातों अपनों का
ये मान लिया मेरे दिल ने पत्थर से कठोर
कुछ तो है
सागर से खारा और काजल से काला कुछ
तो है
कैसे बेटों ने मार दिया जो जीवन देने
वाली थी
कैसे वो सब कुछ भूल गए जो उनके जीवन
की माली थी
मेरे समाज की ये देख के मेंभी रोता है
भारत के टूटते संस्कारों पर में
आपा खोता है
ये कलमकार विनती करता है
संस्कृति के रखवारो से
भारत के सजग सुपुत्रों से अपनी माओं के
राजदुलारों से
माँ दुर्गा माँ की मूरत है,माँ सीता माँ सूरत है
माँ की शक्ति है माँ हर बच्चे की जरूरत है
उसकी हीरे सी आंखों में आंसू न
कभी आने देना
उसकी उजियारी राहों में अधियारे न
कभी छाने देना
वो ही भगवान् तुम्हारी है, वजूद
की परिभाषा है
वो जीवन की सोची हर मंजिल
की आशा हैं
उससे कुछ नहीं चाहिए बस तुम जी भर
प्यार करो
पूरी करो हर उसकी ख्वाइश घर में तुम
त्यौहार करो
ये नहीं पर बात ये
पूरी दुनिया ही कहती है
उस बेटे से दुःख दूर ही रहता है
जिसकी माँ सुख से रहती है
माँ की हंसी की किलकारी से घर स्वर्ग
सा लगता है
उसके आँचल की हरियाली से आँगन
उपवन सा लगता है
इसलिए तुम अपनी प्यारी माँ से जी भर
के प्यारी करो
वो घर की लक्ष्मी है अपमान
नही सत्कार करो
वो हर बेटे धनवान हैं जिनकी माँ बाप
जीवित है
उनके पैरो को खोल
पियो वो ही कलियुग का अमृत ह
Bassar
bassar@aol.in
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