को गाँवकी गौशाला तकलौटना थ
नन्हा बछड़ा था तोअबोध ही, वह
चट्टानों, मिट्टी के टीलों, और
ढलानोंपर से उछलता-कूदता हुआ
अपने गंतव्य तक पहुँचने में सफल
हो गया.
अगले दिन एक कुत्ते ने भी गाँव तक
पहुँचने के लिए उसीरास्ते
का इस्तेमाल किया. उसके अगले
दिन एक भेड़ उस रास्ते पर चल पड़ी.
एक भेड़ के पीछे अनेक भेड़ चल पडीं. भेड़
जो ठहरीं!
उस रास्ते पर चलाफिरी के निशान
देखकर लोगों ने भी उसका इस्तेमाल
शुरू कर दिया.ऊंची-
नीची पथरीली जमीन पर आते-जाते
समय वे पथकी दुरूहता को कोसते रहते
– पथ था ही ऐसा! लेकिन किसी ने
भी सरल-सुगम पथ की खोज के लिए
प्रयास नहीं किये.
समय बीतने के साथ वह पगडंडीउस
गाँव तक पहुँचने का मुख्य मार्ग बन
गयी जिसपर बेचारे पशु बमुश्किल
गाड़ीखींचते रहते. उस कठिन पथ के
स्थान पर कोई सुगम पथ
होता तो लोगों को यात्रा में न
केवल समय की बचत होती वरन वे
सुरक्षित भी रहते.
कालांतर में वह गाँव एक नगरबन
गया और पथ राजमार्ग बन गया. उस
पथ की समस्याओं पर चर्चा करते रहने
के अतिरिक किसी ने कभी कुछ
नहीं किया.
बूढ़ा जंगल यह सब बहुत लंबेसमय से देख
रहा था. वह बरबस मुस्कुराता और यह
सोचता रहता कि मनुष्य
हमेशा ही सामने खुले पड़े विकल्प
को मजबूती से जकड़ लेते हैं औरयह
विचार नहीं करते कि कहींकुछ उससे
बेहतर भी किया जा सकता है.
Bassar
bassar@aol.in
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